भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर के बारे में / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी …)
(कोई अंतर नहीं)

16:13, 5 मार्च 2010 का अवतरण

अपने घर में रहते
कभी नहीं सोचते हम
जो घर आज हमारे इतने पास है
वही एक दिन दूर हो जाएगा
अपने घर आने के लिए
गुज़रना होगा एक यात्रा से
हमें घर की बहुत याद आएगी
बस! अब जल्दी ही घर जाएँगे
और उतनी ही देर से पहुँचेंगे।

कब सोचा था ऐसा
बाज़ार जाएँगे अकेले
घर की पसन्द की चीज़ों को निहारेंगे
दूर से देखेंगे और सोचेंगे
घर में यह चीज़ होती तो कैसी होती।

अचानक आँखों में भरा-पूरा घर आ बसेगा
तेज़ हॉर्न की आवाज़
पल भर में घर से दूर कर देगी।
सारा दिन खिझते चिड़चिड़ाते करेंगे तय
अबकी घर जाएँगे तो वापस नहीं लौटेंगे।

रात में देखते हैं हम भयावह सपना
ऐसा सपना रखते हैं जिसे कोसों दूर
जिसके बारे में सोचते ख़बर पहुँचाते डरते हैं हम।

अच्छे सपने की आस में
कोशिश करते हैं दुबारा सोने की
कहाँ सोचा था हमने
हम सपनों में घर के बारे में सोचेंगे।