भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चीख़ / अरविन्द चतुर्वेद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अरविन्द चतुर्वेद |संग्रह=सुन्दर चीज़ें शहर के …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:47, 7 मार्च 2010 के समय का अवतरण
कहता हूँ गानेवाली बुलबुल
तभी एक पिंजरा लिए
बढ़ आते हैं हाथ
मैं कहता हूँ- कोई भी एक चिड़ि९या
इतने में ही
वे संभाल लेते हैं गुलेल
एक गहरी चीख़
बनकर
रह जाती है
कविता
शान्ति के नाम पर
पता नहीं वे किसके विरुद्ध
अभी तक लड़े जा रहे हैं
एक युद्ध श्रंखला!