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"चोर / बोधिसत्व" के अवतरणों में अंतर
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03:26, 12 मार्च 2010 के समय का अवतरण
मैं दूसरों की बनाई दुनिया में रहा
सड़के जिन पर मैं चला
चप्पलें जो मैंने पहनीं
रोटियाँ जो मैंने खाईं
सब थीं दूसरों की बनाईं ।
झंडे जो मैंने उठाए
नारे जो मैंने लगाए
गीत जो मैंने गाए
सब थे दूसरों के बनाए।
किताबें जौ मैंने पढ़ीं
थी सब दूसरों की गढ़ी।
मैं तो बस चोर की तरह
चुराता रहा दूसरों का किया
मैंने किया क्या
जीवन जिया क्या ?