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12:45, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
बेटी के रोने की
आवाज़ सुनाई देती है
सामने खाली दूध का
डिब्बा दिखता है
मुझे पत्नी की छाती
याद आती है
बहुत कठिन है
सोच सकना
कि सब कुछ
तय किया जा चुका
होता है
हमारे सोचने से पहले
इसलिए लिखने को
कुछ भी नहीं रह जाता है
सिवाय ’भूख’ के