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प्रज्ञा दया पवार
मराठी दलित कविता के सशक्त हस्ताक्षर| प्रसिद्ध दलित कार्यकर्ता और कवि दया पवार की पुत्री। पिता के विचारों का गहरा प्रभाव प्रज्ञा की सोच पर और कृतियों पर भी । मराठी की दलित महिला कवयित्रियों में अग्रणी। अपनी जातिगत पहचान को लेकर बेहद सचेत होने के बावजूद इस पहचान की हदें तोड़ कर अपनी पहचान बनाने में कामयाब । महिलाओं के स्वर को उन्होंने अपनी कृतियों में बुलंद किया \ मुंबई के हाईस्कूल में पढाई के दौरान अपनी पहली कविता लिखी जिसमें स्त्री के दमन के बारे में और उसकी मुक्ति की लड़ाई के बारे विचार व्यक्त किये ।
कविता-संग्रह
अंतःस्थ (1993, 2004)
उत्कट जीवघेण्या धगीवर(उत्कट जानलेवा आंच पर)(2002)
मी भिडवू पहातेय समग्राशी डोळा (मैं समग्र से आँख भिड़ाना चाहती हूँ ) (2007)
आरपार लयीत प्राणांतिक (आरपार लय में प्राणांतिक) (2009,2010)
अन्य कृतियाँ
धादान्त खैरलांजी (2007) [नाटक]
केन्द्र आणि परिघ (केंद्र और वृत्त) (2004) [विविध स्तंभों में छपे लेखों का संग्रह]
मी भयंकराच्या दरवाज्यात उभा आहे - नामदेव ढसाळ यांची निवडक कविता (मैं भयंकर के दरवाजे में खडा हूँ - नामदेव ढसाल की चुनिन्दा कवितायें) [सतीश कालसेकर के साथ ]
अफवा खरी ठरावी म्हणून (अफवाह सच साबित हो इसलिए) (2010) [लघु कथा संग्रह]
पुरस्कार और सम्मान
बिरसा मुंडा राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार,
महाराष्ट्र फ़ाउण्डेशन पुरस्कार,
शांता शेलके पुरस्कार,
महाराष्ट्र सरकार का बालकवि और संत विशेष पुरस्कार।
महाराष्ट्र राज्य के साहित्य और संस्कृति मंडल की सदस्य ।
जन्मतिथि
११ फरवरी १९६६