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"बेघर / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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− | उन्हीं जंगलों को चले | + | जिनके पेड़ों की शाख़ों पे हैं घोंसले |
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शाम होने को है | शाम होने को है | ||
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हम कहाँ जाएँगे | हम कहाँ जाएँगे | ||
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19:52, 1 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
शाम होने को है
लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके परे
कुछ परिन्दे
क़तारें बनाए
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाख़ों पे हैं घोंसले
ये परिन्दे
वहीं लौट कर जाएँगे
और सो जाएँगे
हम ही हैरान हैं
इस मकानों के जंगल में
अपना कहीं भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है
हम कहाँ जाएँगे