भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तड़पती है काया / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <Poem> सफ़्हों पे तड़पती है हर्फ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:09, 3 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
सफ़्हों पे तड़पती है
हर्फ़ों की काया
कई दिनों से वह मुझे
घूँट-घूँट जो पीती रही ....
वह - मौत