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21:59, 4 अप्रैल 2010 का अवतरण

जब भी तुझको पढ़ता हूँ
लफ़्ज़-लफ़्ज़ से गोया
आसमाँ खिला देखूँ
एक-एक मिसरे में
कायनात का साया
फैलता हुआ देखूँ!