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"काग़ज़-1 / जयंत परमार" के अवतरणों में अंतर
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पुराने वक़्त में
लिखा जाता था--
पत्तों पर
भोज पत्र पर
ताड़ पत्र पर
पेड़ के सीने पर
पत्थर पर
पशु के चमड़े पर
ताँबे पर
चारों वेद भी
लिखे गए थे
भोज पत्र पर
लेकिन ज़ुल्म की
काली ऋचाएँ
लिखी गई थीं
मेरे बदन पर
आज भी...!