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"उभयचर-18 / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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पवित्रता का आग्रह हिंसा से भरा है सत्य और मौलिकता का आग्रह भी
अभिनय एक गुण-सा गुणसूत्रों में विकसित हुआ तो
हिंसा की संभावनाओं को न्यूनतम बनाने के वास्ते ही
मैं हिंदू हूं और अन्याय सहना मेरी ऐतिहासिक आदत है
जैसे 20वीं सदी में यहूदी होना पाप था 21वीं में मुसलमान
मध्ययुग की सदियों का पाप मैं इक़बालियों बयानों और तोहमत लगाने की अर्जी़ अग्रिम नामंज़ूर है जिसकी
एक अन्यमनस्क त्रिज्या अपने कोणों का बहिष्कार कर केंद्र से हटती है और अपने प्रतिरोध में गौरवान्वित जिस भी बिंदु पर टिकती है
उसे एक नए केंद्र में तब्दील कर देती है बजाए अपने त्रिज्या होने को तब्दील कर देने के