"कौए का श्राद्ध / अरुण साखरदांडे" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अरुण साखरदांडे }} Category:कोंकणी {{KKCatKavita}} <poem> मादा …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:18, 5 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
|
मादा कौए ने अपने बेटे से पूछा,
अरे,
अपने पिताजी का श्राद्धकर्म नहीं करोगे?
कौए के बेटे ने कहा,
पिताजी ने मेरे लिए क्या किया है?
मादा कौए ने कहा,
पिताजी ने तुम्हारे लिए
हो सकता है कुछ न किया हो
पर तुम्हें जन्म तो दिया है ना?
कौए के बेटे ने ग़ुस्से में
दो-तीन बार सिर पीटा
और ब्राह्मण कौए के यहाँ चल दिया
ब्राह्मण कौए ने तिथि बता दी
कौए के बेटे ने श्राद्ध की
सारी तैयारी कर डाली
श्राद्ध के दिन दो-चार संबंधी भी आए
ब्राह्मण कौए ने शास्त्रों के अनुसार
सारी विधियाँ पूरी कीं
कौए के बेटे ने
मंदिर के पासवाले पेड़ तले पिंड रखा
मंदिर की चौखट पर बैठा
अर्द्ध पागल भिखारी
दौड़ा चला आया और पिंड खाने लगा
"मनुष्य ने पिंड को छुआ, मनुष्य ने पिंड को छुआ"
कौए का एक संबंधी चिल्लाया
मादा कौए की आखें गीली हुईं
आँसू निकल आए
दो आँसू पेड़ के मूल में गिरे
और सूखी मिट्टी में समा गए।
मूल कोंकणी से अनुवाद : सोनिया सिरसाट