"नींव का पत्थर / दामोदर जोशी 'देवांशु'" के अवतरणों में अंतर
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अलग चुल चिणण भैगो | अलग चुल चिणण भैगो | ||
अलग चाल-चलक् चलूंण भैगो | अलग चाल-चलक् चलूंण भैगो | ||
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उं पुछणईं शै-शिल कांहु गो ! निकावगुसैंक्! | उं पुछणईं शै-शिल कांहु गो ! निकावगुसैंक्! | ||
पत्यणि हाली शै-शिल, फत्यणि हाली शै-शिल | पत्यणि हाली शै-शिल, फत्यणि हाली शै-शिल | ||
खजबजै-घजबजै हाली शै-शिल | खजबजै-घजबजै हाली शै-शिल | ||
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मैं सोचूं सैद यस न्हां | मैं सोचूं सैद यस न्हां | ||
यो ढुग-पाथर इतुक सितिल-पितिल न्हान्तन | यो ढुग-पाथर इतुक सितिल-पितिल न्हान्तन | ||
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यां न्हातन जास-कास पैग सिदु-बिदु ! | यां न्हातन जास-कास पैग सिदु-बिदु ! | ||
क्वे कल्मुखी वंशाक्-बान | क्वे कल्मुखी वंशाक्-बान | ||
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यो ढुगन कैं मणीं लै डरै नि सकन | यो ढुगन कैं मणीं लै डरै नि सकन | ||
क्वे ढान-भुई, द्यो बादव, अजुगुति-अणहोति | क्वे ढान-भुई, द्यो बादव, अजुगुति-अणहोति |
21:56, 8 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
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गज़ब हो गया! बड़ा अंधेर
नींव के पत्थरों को खजबजाने की
अनोखी अनहोनी होने लगी है
जहाँ नींव के पत्थर थे
कोई जैसे नहीं दिख रहा वहाँ।
जिन नींव के पत्थरों को अपनी बलि दे कर
अपनी संपत्ति की तरफ़ ध्यान न दे नष्ट कर
राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक, ईशु-मुहम्मद ने
शँख-घँटियां बजा कर, फूल-पत्तियाँ चढ़ा कर
सात हाथ नींचे डाला धरती के भीतर
भवन जीवित रहेगा, स्थित रहेगा सोचकर
जिस नींव के पत्थर पर पहरा दिया
गांधी, सुभाष, पटेल व तिलक ने
अशफाक, शेखर, भगत सिंह ने
जाने किस-किस ने किया अपना सर्वस्व न्यौछावर
जिसका ग्वाला बनाया गया हम को।
अरे! अनहोनी हुई, खेत ही अपनी फसल खाने लग गया
धर्म-जाति, देश-इलाके के, अपने-पराये के नाम पर
नींव के पत्थरों को चुराने लग गया
उठा कर एकत्र करने लग गया
अपना अलग चूल्हा बनाने लग गया
अलग ही चलन चलाने लग गया
वे पूछ रहे हैं, नींव के पत्थर कहाँ गए ! अनाथ से !
पटक दिए हैं नींव के पत्थर, झटक दिए हैं नींव के पत्थर
खजबजा-अपनी जगह से हिला दिए हैं नींव के पत्थर
वे पूछ रहे हैं, अरे! ग्वाला कहाँ सो गया !
मैं सोचता हूं शायद ऐसा नहीं है
ये पत्थर, इतने मुलायम नहीं हैं
जो बेकार थे वे पहले ही मिट्टी हो चुके
जो अपने न थे, पहले ही खत्म हो चुके
जो अब हैं, वे इतने आसान, नाज़ुक नहीं हैं
किसी कमज़ोर वंश की निकृष्ट सन्तान से
इन पत्थरों को कोई थोड़ा भी डरा नहीं सकता
कैसी भी अंधड़-बारिश, हवा-बादल, अनहोनी
इन शिव लिंगों को हिला नहीं सकती
अरे! अब इस तीन युगों की धूनी को जो हिलाएगा
अरे! अब इस सतयुग की शक्ति को जो खजबजाऐगा
ख़बरदार! देख लेना फिर
उसकी नींव का पत्थर, सहारा
पहले ही हिल, उखड़ जाऐगा।
मूल कुमाउनीं पाठ
शै-शिल
गजब हैगो! बड़ अन्धेर
शै-शिल कैं खजबजूणकि
अणकसी नि हुणि काव हुण भैगे
जति कैं शै-शिल छी
क्वे जस नि देखीणय उति कैं!
आपणि लटि-पटि में भाँग फुलै बेर
राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक, ईशु-मुहम्मदैल
सांक-घांट बजै बेर, फूल-पाति चढै बेर
सात हात ताव खितौ धर्ति भितेर
कुड़ि ज्यूनि रौलि, थिरि रौलि कै बेर
जै शै-शिलक् पहर करौ
गांधी, सुभाश, पटेल, तिलकल
अशफाक, शेखर, भगतसिंहैल
जांणी कैल-कैल करी दैल-फैल
जैक ग्वाव बणाई गो हमुकैं।
अरे! अजुगुति भै, गाड़ उज्यड़ खांण भैगो
धर्म-जाती, देश-इलाकाक्,आपंण-पर्या नौं पर
शै-शिलाक् ढुगन कैं चोरण भैगो
टिपि बेर एकबटूण भैगो
अलग चुल चिणण भैगो
अलग चाल-चलक् चलूंण भैगो
उं पुछणईं शै-शिल कांहु गो ! निकावगुसैंक्!
पत्यणि हाली शै-शिल, फत्यणि हाली शै-शिल
खजबजै-घजबजै हाली शै-शिल
उं पुछणईं अरे! ग्वाव काहुं कल्टोईणौ !
मैं सोचूं सैद यस न्हां
यो ढुग-पाथर इतुक सितिल-पितिल न्हान्तन
बुसिल छी जो बुसी गईं पैलियै
आपंण नि छी जो पुरी गईं पैलियै
यां न्हातन जास-कास पैग सिदु-बिदु !
क्वे कल्मुखी वंशाक्-बान
यो ढुगन कैं मणीं लै डरै नि सकन
क्वे ढान-भुई, द्यो बादव, अजुगुति-अणहोति
यो शिव लिंगन कैं सरै नि सकन
अरे! आब यै तिरजुगी धुणि कैं जो हलकाल
अरे! आब ये सत्जुगी शक्ति कैं जो खजबजाल
खबरदार! देखि ल्हिया रे
वीक शै-शिल गोठक्-किल
पैलियै खजबजै जाल।