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"शहर / जयंत परमार" के अवतरणों में अंतर
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20:10, 11 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
पल भर में
लहू की एक नद्दी में गिरा था
हथेलियों के बल मुश्किल से
अभी-अभी उठा-
माथे और कनपटियों से
अब भी ख़ून टपकता है
हाथ लटकता है झोली में
एक टाँग गोली से जख़्मी
मुश्किल से वह
बग़ल में बैसाखी के सहारे
अपनी कमर सीधी करता है
और खड़ा होने की कोशिश करता है।