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"बचपन / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

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07:58, 16 अप्रैल 2010 का अवतरण

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम ।

बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।

अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया

कपड़ों को अपने बदलना न आया

लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम।

बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।


अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना

घर आके दिया हुआ काम निबटाना

होमवर्क करने में फूल जाये दम।

बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।


देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती

दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती

बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम।

बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।


इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना

रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना

उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम।

बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।। </poem>