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कबीर दोहावली / पृष्ठ १

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तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय । <BR/>
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घानेरी घनेरी होय ॥ 2 ॥ <BR/><BR/>
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । <BR/>