"सबसे बड़ी खबर / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर
Kumar suresh (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: == सबसे बड़ी खबर == <poem>कितनी ही बातें जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कुमार सुरेश | |
− | <poem>कितनी ही बातें | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | कितनी ही बातें | ||
जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं | जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं | ||
हो जातीं हैं नियंत्रित ढंग से | हो जातीं हैं नियंत्रित ढंग से | ||
− | जैसे सूरज बिना | + | जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरा चीर कर |
समय पर निकल आता है | समय पर निकल आता है | ||
साबुत निकल आती है चेतना | साबुत निकल आती है चेतना | ||
अँधेरी खोह से | अँधेरी खोह से | ||
− | तय समय पर बरस | + | तय समय पर बरस जाती है ओस |
− | नहाकर खाना बनाती हैं | + | नहाकर खाना बनाती हैं पत्तियाँ |
− | जग जातें हैं | + | जग जातें हैं पक्षी |
− | गिलहरियाँ | + | गिलहरियाँ काम से लग जातीं हैं |
− | चहचहाने और चिहुकने की | + | चहचहाने और चिहुकने की आवाज़ें |
सबको बतातीं हैं | सबको बतातीं हैं | ||
दुनिया अभी रहने लायक है | दुनिया अभी रहने लायक है | ||
दूध वाला समय पर आ जाता है | दूध वाला समय पर आ जाता है | ||
− | चाय मिल जाती है अपने | + | चाय मिल जाती है अपने वक़्त |
− | बदस्तूर आ जाता है | + | बदस्तूर आ जाता है अख़वार |
− | + | दफ़्तर और ट्रेफ़िक की सारी मशक्कतों के बीच | |
कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है | कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है | ||
नयी करवट लेती है उम्मीद | नयी करवट लेती है उम्मीद | ||
− | वापस | + | वापस लौटना घर |
उस प्यारी के पास | उस प्यारी के पास | ||
− | जो मेरा | + | जो मेरा इन्तज़ार करती है |
हमेशा बड़ा सुकून है | हमेशा बड़ा सुकून है | ||
छलछलाता है बेटी का संतोष | छलछलाता है बेटी का संतोष | ||
− | + | पड़ोसी की एक साल की नातिन लगाती है | |
− | ताता दादा की अटपटी | + | ताता दादा की अटपटी ज़ोर की पुकार |
तन्द्रा से जाग उठता है घर | तन्द्रा से जाग उठता है घर | ||
− | रात अँधेरी | + | रात अँधेरी घाटी में अकेले उतारते वक़्त |
− | रहता है | + | रहता है विश्वास |
कल फिर सुबह होगी | कल फिर सुबह होगी | ||
− | फिर होगा एक | + | फिर होगा एक ख़ुशनुमा दिन |
− | और वह सबसे बड़ी | + | और वह सबसे बड़ी ख़बर ख़ुशी |
− | + | लौटेगी बार-बार छोटी-छोटी बातों में | |
</poem> | </poem> |
21:37, 17 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
कितनी ही बातें
जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं
हो जातीं हैं नियंत्रित ढंग से
जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरा चीर कर
समय पर निकल आता है
साबुत निकल आती है चेतना
अँधेरी खोह से
तय समय पर बरस जाती है ओस
नहाकर खाना बनाती हैं पत्तियाँ
जग जातें हैं पक्षी
गिलहरियाँ काम से लग जातीं हैं
चहचहाने और चिहुकने की आवाज़ें
सबको बतातीं हैं
दुनिया अभी रहने लायक है
दूध वाला समय पर आ जाता है
चाय मिल जाती है अपने वक़्त
बदस्तूर आ जाता है अख़वार
दफ़्तर और ट्रेफ़िक की सारी मशक्कतों के बीच
कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है
नयी करवट लेती है उम्मीद
वापस लौटना घर
उस प्यारी के पास
जो मेरा इन्तज़ार करती है
हमेशा बड़ा सुकून है
छलछलाता है बेटी का संतोष
पड़ोसी की एक साल की नातिन लगाती है
ताता दादा की अटपटी ज़ोर की पुकार
तन्द्रा से जाग उठता है घर
रात अँधेरी घाटी में अकेले उतारते वक़्त
रहता है विश्वास
कल फिर सुबह होगी
फिर होगा एक ख़ुशनुमा दिन
और वह सबसे बड़ी ख़बर ख़ुशी
लौटेगी बार-बार छोटी-छोटी बातों में