भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देश से प्यार / श्रीकृष्ण सरल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल }} <poem> जिसे देश से प्यार नहीं हैं जी...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
 
|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
 
}}
 
}}
 +
[[Category:गीत]]
 
<poem>
 
<poem>
 
जिसे देश से प्यार नहीं हैं
 
जिसे देश से प्यार नहीं हैं

08:38, 19 अप्रैल 2010 का अवतरण

जिसे देश से प्यार नहीं हैं
जीने का अधिकार नहीं हैं।

जीने को तो पशु भी जीते
अपना पेट भरा करते हैं
कुछ दिन इस दुनिया में रह कर
वे अन्तत: मरा करते हैं।
ऐसे जीवन और मरण को,
होता यह संसार नहीं है
जीने का अधिकार नहीं हैं।

मानव वह है स्वयं जिए जो
और दूसरों को जीने दे,
जीवन-रस जो खुद पीता वह
उसे दूसरों को पीने दे।
साथ नहीं दे जो औरों का
क्या वह जीवन भार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

साँसें गिनने को आगे भी
साँसों का उपयोग करो कुछ
काम आ सके जो समाज के
तुम ऐसा उद्योग करो कुछ।
क्या उसको सरिता कह सकते
जिसमें बहती धार नहीं है ?
जीने का अधिकार नहीं हैं।