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"दाक्षिणात्य स्त्री-1 / राजशेखर" के अवतरणों में अंतर
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19:23, 21 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
ऊपर से ही
घुँघराली लटों को मोड़ कर
बना लेती हैं वे जूड़ा
उससे थोड़ी
छोटी लटें छितराकर
बिखर जाती हैं ललाट पर
बग़ल में आँचल को कसकर बाँधकर
कमर की गाँठ
कसकर बंद कर लेती हैं
कुन्तल की
कामिनियों का
यह वेष
चिरविजयी करे।
मूल संस्कृत से अनुवाद : राधावल्लभ त्रिपाठी
