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"धूप / सफ़दर इमाम क़ादरी" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सफ़दर इमाम क़ादरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> सूखे और ऊ…) |
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20:25, 23 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
सूखे और ऊँचे पहाड़ों को
मटियाले रंगों की चमक दे जाती है
अपनी पहाड़ी से अलग
दूसरी पहाड़ी पर
सुरमई हो जाती है
उचटती नज़र डालो
तो धुआँ-धुआँ
बादलों की छाँव की तरह
दिखाई देती है
नंगी आँखों से देखो
तो लूट लेने या खा जाने को जी चाहे
ऐसी रौशन और चमकदार
बदन के पोर-पोर में
उतरने वाली धूप
कुछ कहना चाहती है!!!