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"कार्तिक-स्नान करने वाली लड़कियाँ / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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घर-घर
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माँगती हैं फूल
कहती हैं लड़कियॉं<br />
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साँझ गहराने से पहले
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कि कल उन्‍हें मिल जाएगा
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कितने मासे सोने का पुण्‍य?
तालाब के गुनगुने जल में<br />
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नहाती हुई लड़कियॉं हॅंसती हैं<br />
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कितनी भोली हैं
छेड़ती हैं एक-दूसरे को<br />
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मेरे गॉंव की लड़कियाँ
मारती हैं छींटे<br />
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जो अलस्‍सुबह उठती हैं
और लेती हैं सबके मन की थाह<br />
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और रात के दुर्गम जंगल को पहली बार
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अपनी हँसी के फूलों से भर देती हैं
इतना-इतना सोना चढ़ाकर मुंह अंधेरे<br />
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अपने भोले बाबा से<br />
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तालाब के गुनगुने जल में
क्‍या मॉंगती हैं?<br />
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नहाती हुई लड़कियाँ हॅंसती हैं
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छेड़ती हैं एक-दूसरे को
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मारती हैं छींटे
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और लेती हैं सबके मन की थाह
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 +
इतना-इतना सोना चढ़ाकर मुँह अँधेरे
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अपने भोले बाबा
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क्‍या माँगती हैं?
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23:51, 26 अप्रैल 2010 का अवतरण

घर-घर
माँगती हैं फूल
साँझ गहराने से पहले
कार्तिक-स्‍नान करने वाली लड़कियॉं......

फूल अगर केसरिया हो
खिल उठती हैं लड़किययाँ
एक केसरिया फूल से कार्तिक में
मिलता है एक मासे सोने का पुण्‍य
कहती हैं लड़कियाँ

एक-एक फूल के लिए
दौड़ती हैं, झपटती हैं
लड़ती हैं लड़कियाँ
और कॉंटों के चुभने की
परवाह नहीं करतीं

लौटती हुई लड़कियाँ गिनती हैं
अपने-अपने हिस्‍से के फूल
और हिसाबती हैं
कि कल उन्‍हें मिल जाएगा
कितने मासे सोने का पुण्‍य?

कितनी भोली हैं
मेरे गॉंव की लड़कियाँ
जो अलस्‍सुबह उठती हैं
और रात के दुर्गम जंगल को पहली बार
अपनी हँसी के फूलों से भर देती हैं

तालाब के गुनगुने जल में
नहाती हुई लड़कियाँ हॅंसती हैं
छेड़ती हैं एक-दूसरे को
मारती हैं छींटे
और लेती हैं सबके मन की थाह

इतना-इतना सोना चढ़ाकर मुँह अँधेरे
अपने भोले बाबा स
क्‍या माँगती हैं?