भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुकार / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: बरसों से एक पुकार<br /> मेरा पीछा कर रही है<br /> एक महीन और मार्मिक पुका…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | बरसों से एक पुकार | + | {{KKGlobal}} |
− | मेरा पीछा कर रही है | + | {{KKRachna |
− | एक महीन और मार्मिक पुकार | + | |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |
− | इस महानगर में भी | + | |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव |
− | मैं इसे साफ-साफ सुन सकता | + | }} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | आज जब यह पहली बारिश के बाद | + | <Poem> |
− | धरती की सोंधी सुगंध की तरह | + | बरसों से एक पुकार |
− | हर तरु से उठ रही है | + | मेरा पीछा कर रही है |
− | मैं एकदम बेचैन और अवश | + | एक महीन और मार्मिक पुकार |
− | हो गया | + | इस महानगर में भी |
− | + | मैं इसे साफ-साफ सुन सकता हूँ। | |
− | क्या यह जड़ों की पुकार है | + | |
− | फुनगियों के लिए? | + | आज जब यह पहली बारिश के बाद |
− | क्या यह डूबते दिन की पुकार है | + | धरती की सोंधी सुगंध की तरह |
− | पखेरूओं के लिए? | + | हर तरु से उठ रही है |
− | + | मैं एकदम बेचैन और अवश | |
− | यह उस रास्ते की पुकार हो सकती है | + | हो गया हूँ इसके सामने |
− | जिसे अभी लौटने को कहकर | + | |
− | मैं छोड़ आया | + | क्या यह जड़ों की पुकार है |
− | + | फुनगियों के लिए? | |
− | यह पहाड़ों में भटकती कंदील की पुकार होगी | + | क्या यह डूबते दिन की पुकार है |
− | + | पखेरूओं के लिए? | |
− | यह | + | |
− | मैं बरसों से घर नहीं | + | यह उस रास्ते की पुकार हो सकती है |
− | < | + | जिसे अभी लौटने को कहकर |
+ | मैं छोड़ आया हूँ | ||
+ | |||
+ | यह पहाड़ों में भटकती कंदील की पुकार होगी | ||
+ | |||
+ | यह माँ की पुकार होगी | ||
+ | मैं बरसों से घर नहीं लौटा। | ||
+ | </poem> |
01:01, 1 मई 2010 के समय का अवतरण
बरसों से एक पुकार
मेरा पीछा कर रही है
एक महीन और मार्मिक पुकार
इस महानगर में भी
मैं इसे साफ-साफ सुन सकता हूँ।
आज जब यह पहली बारिश के बाद
धरती की सोंधी सुगंध की तरह
हर तरु से उठ रही है
मैं एकदम बेचैन और अवश
हो गया हूँ इसके सामने
क्या यह जड़ों की पुकार है
फुनगियों के लिए?
क्या यह डूबते दिन की पुकार है
पखेरूओं के लिए?
यह उस रास्ते की पुकार हो सकती है
जिसे अभी लौटने को कहकर
मैं छोड़ आया हूँ
यह पहाड़ों में भटकती कंदील की पुकार होगी
यह माँ की पुकार होगी
मैं बरसों से घर नहीं लौटा।