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"बदन की खुशबू / ज़ैदी जाफ़र रज़ा" के अवतरणों में अंतर
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रौज़ने-ख्वाब से आती है बदन की खुशबू। | रौज़ने-ख्वाब से आती है बदन की खुशबू। | ||
है यक़ीनन ये उसी गुंचा-दहन की खुशबू। | है यक़ीनन ये उसी गुंचा-दहन की खुशबू। | ||
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उसने परदेस में की मेरी जुबां में बातें | उसने परदेस में की मेरी जुबां में बातें | ||
मुझ को बे-साख्ता याद आई वतन की खुशबू। | मुझ को बे-साख्ता याद आई वतन की खुशबू। | ||
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उस मुसव्विर को बहर-तौर दबाया सब ने | उस मुसव्विर को बहर-तौर दबाया सब ने | ||
रोक पाया न मगर कोई भी फ़न की खुशबू। | रोक पाया न मगर कोई भी फ़न की खुशबू। | ||
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धूप सर्दी में पहेनती है गुलाबी कपड़े | धूप सर्दी में पहेनती है गुलाबी कपड़े | ||
बंद कमरों से भी आती है किरन की खुशबू। | बंद कमरों से भी आती है किरन की खुशबू। | ||
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पास आये तो लगे दूध सी नदियों का बहाव, | पास आये तो लगे दूध सी नदियों का बहाव, | ||
हो जो रुखसत तो मिले गंगो-जमन की खुशबू। | हो जो रुखसत तो मिले गंगो-जमन की खुशबू। | ||
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मेरा घर नीम बरहना है किवाड़ों के बगैर, | मेरा घर नीम बरहना है किवाड़ों के बगैर, | ||
मेरे घर आयेगी क्यों उसके फबन की खुशबू। | मेरे घर आयेगी क्यों उसके फबन की खुशबू। | ||
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जाने ले जाये कहाँ ये मेरी आशुफ्ता-सरी, | जाने ले जाये कहाँ ये मेरी आशुफ्ता-सरी, | ||
मुझको महसूस हुई दारो-रसन की खुशबू। | मुझको महसूस हुई दारो-रसन की खुशबू। | ||
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11:48, 1 मई 2010 के समय का अवतरण
रौज़ने-ख्वाब से आती है बदन की खुशबू।
है यक़ीनन ये उसी गुंचा-दहन की खुशबू।
उसने परदेस में की मेरी जुबां में बातें
मुझ को बे-साख्ता याद आई वतन की खुशबू।
उस मुसव्विर को बहर-तौर दबाया सब ने
रोक पाया न मगर कोई भी फ़न की खुशबू।
धूप सर्दी में पहेनती है गुलाबी कपड़े
बंद कमरों से भी आती है किरन की खुशबू।
पास आये तो लगे दूध सी नदियों का बहाव,
हो जो रुखसत तो मिले गंगो-जमन की खुशबू।
मेरा घर नीम बरहना है किवाड़ों के बगैर,
मेरे घर आयेगी क्यों उसके फबन की खुशबू।
जाने ले जाये कहाँ ये मेरी आशुफ्ता-सरी,
मुझको महसूस हुई दारो-रसन की खुशबू।