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"आँच मिले / शकुन्त माथुर" के अवतरणों में अंतर

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20:05, 2 मई 2010 के समय का अवतरण

कहीं से आग मिले
इस बरफ़ीली जगह में
कहीं से आँच मिले
इस ठंडे शहर में
कहीं से राग उठे
इस वीराने में
कहीं शहनाई बजे
इस मनहूस मरघटी ज़माने में
कहीं आम का पेड़ बौराए
सुनसान को तोड़े कोयल
हवा तेज़ और तेज़ चले
गले लगे
शरमाए

दोपहरी भन्नाती है
धूप गरम और और
गरमाती है
रुकी हूँ अभी भी
किसी गंध आँच के लिए
किसी एक शाम के लिए
लिए गए किसी एक नाम के लिए।