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अहिंसा / सुमित्रानंदन पंत
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11:25, 4 मई 2010
’है जीव जीव का जीवन’,--रोक न सका प्रगति।
भव तत्व प्रेम: साधन हैं उभय विनाश सृजन,
साधन बन सकते नहीं सृष्टि गति में बंधन!
रचनाकाल: फ़रवरी’ ४०
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