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"वहाँ न वे होते हैं / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर

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हम जब घर लौटते हैं
 
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बच्‍चे सोये मिलते हैं
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और हमारे उठने से पहले
 
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निकल जाते हैं.
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जब कभी उन्‍हें हम प्‍यार करते हैं
 
जब कभी उन्‍हें हम प्‍यार करते हैं
 
देखते हैं कि उन्‍हें
 
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हमारी आदत नहीं हैं.
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एक दिन हमसे भी प्‍यारे
 
एक दिन हमसे भी प्‍यारे
 
उनके दोस्‍त होते हैं
 
उनके दोस्‍त होते हैं
उनहें दूसरों के यहां अच्‍छा लगता है
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उन्हें दूसरों के यहाँ अच्‍छा लगता है
 
परीक्षा के दिनों में
 
परीक्षा के दिनों में
 
किसी दूसरे घर पढ़ते और सोते बच्‍चे
 
किसी दूसरे घर पढ़ते और सोते बच्‍चे
 
अपने लगाव का दायरा बड़ा करते हुए
 
अपने लगाव का दायरा बड़ा करते हुए
स्‍वतंत्र से लगते हैं उनकी भावनाएं
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स्‍वतंत्र से लगते हैं उनकी भावनाएँ
 
असमय वयस्‍क हुई सी छिपती हैं
 
असमय वयस्‍क हुई सी छिपती हैं
 
उनका वह जीवन शुरू होता है
 
उनका वह जीवन शुरू होता है
जिससे हम कभी वाकिफ नहीं होंगे
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जिससे हम कभी वाकिफ़ नहीं होंगे
 
वे अक्‍सर हमारे डर के भीतर से
 
वे अक्‍सर हमारे डर के भीतर से
अपनी जिंदगी शुरू करते हैं
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अपनी ज़िंदगी शुरू करते हैं
 
जो हम तय करते हैं
 
जो हम तय करते हैं
वे उसके खिलाफ होते हैं
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वे उसके खिलाफ़ होते हैं
 
बहुधा उन्‍हें ऐसे देखते हैं हम
 
बहुधा उन्‍हें ऐसे देखते हैं हम
कि बहुत दूर से देखते हों.
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कि बहुत दूर से देखते हों।
  
 
उनके दुःखों की आशंका से सिहरता हुए
 
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बहुत बाद में जब हम
 
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कुछ कहते हैं
 
कुछ कहते हैं
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वहाँ वे न होते हैं
न हमारे गले से आवाज निकलती है.
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न हमारे गले से आवाज़ निकलती है।
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21:24, 5 मई 2010 के समय का अवतरण

हम जब घर लौटते हैं
बच्‍चे सोए मिलते हैं
और हमारे उठने से पहले
निकल जाते हैं।

जब कभी उन्‍हें हम प्‍यार करते हैं
देखते हैं कि उन्‍हें
हमारी आदत नहीं हैं।

एक दिन हमसे भी प्‍यारे
उनके दोस्‍त होते हैं
उन्हें दूसरों के यहाँ अच्‍छा लगता है
परीक्षा के दिनों में
किसी दूसरे घर पढ़ते और सोते बच्‍चे
अपने लगाव का दायरा बड़ा करते हुए
स्‍वतंत्र से लगते हैं उनकी भावनाएँ
असमय वयस्‍क हुई सी छिपती हैं
उनका वह जीवन शुरू होता है
जिससे हम कभी वाकिफ़ नहीं होंगे
वे अक्‍सर हमारे डर के भीतर से
अपनी ज़िंदगी शुरू करते हैं
जो हम तय करते हैं
वे उसके खिलाफ़ होते हैं
बहुधा उन्‍हें ऐसे देखते हैं हम
कि बहुत दूर से देखते हों।

उनके दुःखों की आशंका से सिहरता हुए
हम सोचते हैं
कि हमें उनके सुख पता हैं
बहुत बाद में जब हम
कुछ कहते हैं
वहाँ वे न होते हैं
न हमारे गले से आवाज़ निकलती है।