भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रकृति और हम / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (प्रकृति और हम / अनातोली पारपरा का नाम बदलकर प्रकृति और हम / अनातोली परपरा कर दिया गया है)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा
 
|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 
[[Category:रूसी भाषा]]
 
+
<poem>
 
+
 
जब भी घायल होता है मन
 
जब भी घायल होता है मन
 
 
प्रकृति रखती उस पर मलहम
 
प्रकृति रखती उस पर मलहम
 
 
पर उसे हम भूल जाते हैं
 
पर उसे हम भूल जाते हैं
 
 
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
 
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
 
  
 
उसकी नदियाँ, उसके सागर
 
उसकी नदियाँ, उसके सागर
 
 
उसके जंगल और पहाड़
 
उसके जंगल और पहाड़
 
 
सब हितसाधन करते हमारा
 
सब हितसाधन करते हमारा
 
 
पर उसे दें हम उजाड़
 
पर उसे दें हम उजाड़
 
  
 
योजना कभी बनाएँ भयानक
 
योजना कभी बनाएँ भयानक
 
+
कभी सोच लें ऐसे काम
कभी सोच लें ऎसे काम
+
 
+
 
नष्ट करें कुदरत की रौनक
 
नष्ट करें कुदरत की रौनक
 
 
हम, जो उसकी ही सन्तान
 
हम, जो उसकी ही सन्तान
 +
</poem>

21:35, 7 मई 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली परपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  प्रकृति और हम

जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं

उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़

योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऐसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान