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"प्रकृति और हम / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
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जब भी घायल होता है मन | जब भी घायल होता है मन | ||
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प्रकृति रखती उस पर मलहम | प्रकृति रखती उस पर मलहम | ||
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पर उसे हम भूल जाते हैं | पर उसे हम भूल जाते हैं | ||
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ध्यान कहाँ रख पाते हैं | ध्यान कहाँ रख पाते हैं | ||
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उसकी नदियाँ, उसके सागर | उसकी नदियाँ, उसके सागर | ||
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उसके जंगल और पहाड़ | उसके जंगल और पहाड़ | ||
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सब हितसाधन करते हमारा | सब हितसाधन करते हमारा | ||
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पर उसे दें हम उजाड़ | पर उसे दें हम उजाड़ | ||
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योजना कभी बनाएँ भयानक | योजना कभी बनाएँ भयानक | ||
− | + | कभी सोच लें ऐसे काम | |
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नष्ट करें कुदरत की रौनक | नष्ट करें कुदरत की रौनक | ||
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हम, जो उसकी ही सन्तान | हम, जो उसकी ही सन्तान | ||
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21:35, 7 मई 2010 के समय का अवतरण
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जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़
योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऐसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान