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"जाता हुआ साल / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर

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इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
  
 
देश पर चला दी आरी
 
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लूट-खसोट मचा दी भारी
 
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अराजकता फैली चहुँ ओर
 
अराजकता फैली चहुँ ओर
 
 
महाप्रलय का आया दौर
 
महाप्रलय का आया दौर
 
 
इस गड़बड़ और तबाही ने जन को बहुत सताया है
 
इस गड़बड़ और तबाही ने जन को बहुत सताया है
 
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
  
 
अपने पास जो कुछ थोड़ा था
 
अपने पास जो कुछ थोड़ा था
 
 
पुरखों ने भी जो जोड़ा था
 
पुरखों ने भी जो जोड़ा था
 
 
लूट लिया सब इस साल ने
 
लूट लिया सब इस साल ने
 
 
देश में फैले अकाल ने
 
देश में फैले अकाल ने
 
 
ठंड, भूख और महाकाल की पड़ी देश पर छाया है
 
ठंड, भूख और महाकाल की पड़ी देश पर छाया है
 
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
  
 
भंग हो गई अमन-शान्ति
 
भंग हो गई अमन-शान्ति
 
 
टूटी सुखी-जीवन की भ्रान्ति
 
टूटी सुखी-जीवन की भ्रान्ति
 
 
अफ़रा-तफ़री-सी मची हुई है
 
अफ़रा-तफ़री-सी मची हुई है
 
 
क्या राह कहीं कोई बची हुई है
 
क्या राह कहीं कोई बची हुई है
 
 
बस, जन का अब यही एक सवाल है
 
बस, जन का अब यही एक सवाल है
 
 
क्यों लाल झण्डे का हुआ बुरा हाल है
 
क्यों लाल झण्डे का हुआ बुरा हाल है
 
 
हँसिया और हथौड़े को भी, देखो, मार भगाया है
 
हँसिया और हथौड़े को भी, देखो, मार भगाया है
 
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
 
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
  
  
रचनाकाल : 1992
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21:46, 7 मई 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली परपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  जाता हुआ साल

इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है

देश पर चला दी आरी
लूट-खसोट मचा दी भारी
अराजकता फैली चहुँ ओर
महाप्रलय का आया दौर
इस गड़बड़ और तबाही ने जन को बहुत सताया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है

अपने पास जो कुछ थोड़ा था
पुरखों ने भी जो जोड़ा था
लूट लिया सब इस साल ने
देश में फैले अकाल ने
ठंड, भूख और महाकाल की पड़ी देश पर छाया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है

भंग हो गई अमन-शान्ति
टूटी सुखी-जीवन की भ्रान्ति
अफ़रा-तफ़री-सी मची हुई है
क्या राह कहीं कोई बची हुई है
बस, जन का अब यही एक सवाल है
क्यों लाल झण्डे का हुआ बुरा हाल है
हँसिया और हथौड़े को भी, देखो, मार भगाया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है


रचनाकाल : 1992