"कैसे आए वर्ष / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
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आज मन हुआ मेरा फिर से कुछ गाने का | आज मन हुआ मेरा फिर से कुछ गाने का | ||
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फिर से मुस्कराने का | फिर से मुस्कराने का | ||
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सिर पर मंडराती मौत को डरा कर भगाने का | सिर पर मंडराती मौत को डरा कर भगाने का | ||
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फिर से हँसने औ' हँसाने का | फिर से हँसने औ' हँसाने का | ||
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चिन्ता नहीं की कुछ मैंने अपनी तब | चिन्ता नहीं की कुछ मैंने अपनी तब | ||
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जब सेवा की इस देश की | जब सेवा की इस देश की | ||
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मैं झेल गया सब तकलीफ़ें, पीड़ा | मैं झेल गया सब तकलीफ़ें, पीड़ा | ||
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इस जीवन की, परिवेश की | इस जीवन की, परिवेश की | ||
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पर अब समय यह कैसा आया | पर अब समय यह कैसा आया | ||
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कैसे आए वर्ष | कैसे आए वर्ष | ||
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छीन ले गए जीवन का सुख सब | छीन ले गए जीवन का सुख सब | ||
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छीन ले गए हर्ष | छीन ले गए हर्ष | ||
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श्रम करता मैं अब भी बेहद | श्रम करता मैं अब भी बेहद | ||
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अब भी तोड़ूँ हाड़ | अब भी तोड़ूँ हाड़ | ||
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देश बँट गया अब कई हिस्सों में | देश बँट गया अब कई हिस्सों में | ||
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हो गया पन्द्रह फाड़ | हो गया पन्द्रह फाड़ | ||
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भूख, तबाही और कष्ट ही अब | भूख, तबाही और कष्ट ही अब | ||
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जन की हैं पहचान | जन की हैं पहचान | ||
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औ' सुख-विलास में मस्त दिखें सब | औ' सुख-विलास में मस्त दिखें सब | ||
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क्रेमलिन के शैतान | क्रेमलिन के शैतान | ||
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दिन वासन्ती फिर से आया है | दिन वासन्ती फिर से आया है | ||
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कई वर्षों के बाद | कई वर्षों के बाद | ||
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जाग उठा है देश यह मेरा फिर | जाग उठा है देश यह मेरा फिर | ||
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बीत रही है रात | बीत रही है रात | ||
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मेहनत गुलाम-सी करता हूँ मैं | मेहनत गुलाम-सी करता हूँ मैं | ||
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पर दास नहीं हूँ मैं | पर दास नहीं हूँ मैं | ||
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महाशक्ति बनेगा रूस यह फिर से | महाशक्ति बनेगा रूस यह फिर से | ||
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हताश नहीं हूँ मैं | हताश नहीं हूँ मैं | ||
− | + | '''रचनाकाल : 1996''' | |
− | रचनाकाल : 1996 | + |
21:49, 7 मई 2010 के समय का अवतरण
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आज मन हुआ मेरा फिर से कुछ गाने का
फिर से मुस्कराने का
सिर पर मंडराती मौत को डरा कर भगाने का
फिर से हँसने औ' हँसाने का
चिन्ता नहीं की कुछ मैंने अपनी तब
जब सेवा की इस देश की
मैं झेल गया सब तकलीफ़ें, पीड़ा
इस जीवन की, परिवेश की
पर अब समय यह कैसा आया
कैसे आए वर्ष
छीन ले गए जीवन का सुख सब
छीन ले गए हर्ष
श्रम करता मैं अब भी बेहद
अब भी तोड़ूँ हाड़
देश बँट गया अब कई हिस्सों में
हो गया पन्द्रह फाड़
भूख, तबाही और कष्ट ही अब
जन की हैं पहचान
औ' सुख-विलास में मस्त दिखें सब
क्रेमलिन के शैतान
दिन वासन्ती फिर से आया है
कई वर्षों के बाद
जाग उठा है देश यह मेरा फिर
बीत रही है रात
मेहनत गुलाम-सी करता हूँ मैं
पर दास नहीं हूँ मैं
महाशक्ति बनेगा रूस यह फिर से
हताश नहीं हूँ मैं
रचनाकाल : 1996