भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इज़्ज़तदार / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार जैन |संग्रह=कहीं और / वीरेन्द्र…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=शरद कोकास |
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
02:31, 13 मई 2010 के समय का अवतरण
एक इज़्ज़तदार
बदनामी की हवाओं में
टीन की छत सा काँपता है
हर डरावनी आवाज़
उसे अपना पीछा करते हुए महसूस होती है
हर दृष्टि घूरती हुई
चर्चाओं कहकहों मुस्कानों का सम्बन्ध
वह अपने आप से जोड़ता है
अपनत्व और उपहास के बोलों को
एक ही लय में सुनता है
समय की चाल में
असहाय होकर देखता है
डर और साहस के बीच
खुद को खंडित होते हुए
कोशिश करता है भीड़ से बचने की
अपने लिये सुरक्षा के इंतज़ामात करता है
एक स्क्रिप्ट लगातार चलती है
उसके मस्तिष्क में
जहाँ वह अपने व्यक्तित्व के बचाव में
संवाद गढ़ता है
पपड़ी की तरह जमता है समय
उसकी पहचान पर
वह पैने नाखूनों से डरता है
उसे लगातार तलाश रहती है
पत्थर से विश्वास वाले दोस्तों की |