भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=कुछ और गुलाब  / गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=कुछ और गुलाब  / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
 +
[[category: ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
  

01:03, 21 मई 2010 का अवतरण


आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है!
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!

एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना खूब है!

बेकहे आये, चले भी बेकहे
खूब था आना, ये जाना खूब है!

हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना खूब है!

भूल है अपना समझ लेना गुलाब
रंग उन आँखों में, माना, खूब है!