भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विदर्भ / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> विदर्भ में ढलती…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:30, 22 मई 2010 के समय का अवतरण
विदर्भ में ढलती नहीं है शोक में डूबी हुई रात
पिता की तस्वीर थामे हुए बच्चे
असमय ही नजर आने लगते हैं वयस्क
विधवाओं की पथराई हुई आंखों में
ठिठकी रहती है अकाल मृत्यु की परछाँई
विदर्भ में ढलती नहीं है शोक में डूबी हुई रात
चक्रवृद्धि ब्याज की सुरंग में धीरे-धीरे
गुम होता जाता है किसान का स्वाभिमान
अपमान की वेदी पर सिर रखकर
धीरे-धीरे सदा के लिए सो जाता है शिकार
विदर्भ में ढलती नहीं है शोक में डूबी हुई रात
बाजीगर दिखाते रहते हैं बीच-बीच में
राहत और मुआवज़े का खेल
साहूकार निगलते जाते हैं धीरे-धीरे
सोने उगलने वाले खेत
विदर्भ में रूकती नहीं है उदास गांवों की करुण सिसकी ।