भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देव प्रसाद चालिहा / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:23, 24 मई 2010 के समय का अवतरण

देव प्रसाद चालिहा को आप नहीं जानते
और अगर जानते भी हैं
तो आप मानेंगे नहीं कि
देव प्रसाद चालिहा को आप जानते हैं

अपने बच्चे भी जान नहीं पाए
देव प्रसाद चालिहा को
पत्नी भी नहीं जान पाई
दोस्त और रिश्तेदार भी नहीं जान पाए
कार्यालय के सहकर्मी भी
अनजान ही रहे
प्रशासन को भी देव प्रसाद चालिहा की
जानकारी नहीं मिली

अख़बारों में चुनाव और घोटाले के बीच
ख़ून और खेल के बीच
एक सर्द ख़बर के रूप में
उपस्थित था वह शख़्स -
देव प्रसाद चालिहा

कल ऐसा भी हो सकता है
कि आप बन जाएँ
देव प्रसाद चालिहा या फिर
मैं बन जाऊँ
देव प्रसाद चालिहा या
समूचा देश बन जाए
देव प्रसाद चालिहा

जिस तरह कार्यालय में विषपान
कर छटपटाता रहा वह शख़्स
उसी तरह हम सभी
एक-एक कर छटपटाते रहें
एड़ियाँ रगड़कर मरते रहें
अपने आदर्शों और सिद्घांतों के साथ
अपनी भूख और अपनी शर्म के साथ
अपने दायित्व और अपनी विवशता के साथ

राजकोष पर कुंडली मारकर बैठे रहे साँप
तीन महीने तक वेतन न मिले और
आँखों के सामने अन्न के लिए मचलें बच्चे
जीवन हो मृत्यु से भी बदतर
एक गाली की तरह

जहाँ बिकना ही हो जीने का एकमात्र रास्ता
चूँकि पशु नहीं बना
इसीलिए कहलाया देव प्रसाद चालिहा
चूँकि बिका नहीं
इसीलिए कहलाया देव प्रसाद चालिहा
और जो भी इस रास्ते पर चलेगा
कहलाएगा देव प्रसाद चालिहा