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"उन मूक प्राणों की कथा / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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जो खिल अँधेरी रात में   
 
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मुरझा गए बस प्रात में  
 
मुरझा गए बस प्रात में  

00:59, 25 मई 2010 का अवतरण


जो खिल अँधेरी रात में
मुरझा गए बस प्रात में
यह भी नहीं पाए समझ, सौन्दर्य क्या, संसार क्या
जो प्रेम करने को चले
प्रिय-स्पर्श पाकर ही जले
यह भी न अनुभव कर सके, है प्रीति क्या, है प्यार क्या
जो व्योम से आये उतर
करने मलिन जग को मुखर
पथ बीच ही खोये मगर
यह भी न पाए जान, जग की रीति क्या, व्यवहार क्या
उन मूक प्राणों की कथा