भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
:मात्र उर की अभिलाष!
 
:मात्र उर की अभिलाष!
 
तुम्हारे पद रज कण में, नाथ,
 
तुम्हारे पद रज कण में, नाथ,
भरा शत सूर्य प्रकाश!
+
:भरा शत सूर्य प्रकाश!
 
</poem>
 
</poem>

17:47, 26 मई 2010 का अवतरण

तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम,
भरा जामे जमशेद!
घिरा मदिरा का फेन ललाम,
बदन पर रति सुख स्वेद!

निछावर करना तुम पर प्राण
तोड़ जीवन के बंध,
प्रतीक्षा में रहना प्रतियाम--
यही स्वर्गिक आनंद!

तुम्हारे चरणों पर हो माथ,
मात्र उर की अभिलाष!
तुम्हारे पद रज कण में, नाथ,
भरा शत सूर्य प्रकाश!