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"जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ ढूँढने जाऊँ
 
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यश छाया  
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धन्य हो गयी मानव-काया
 
धन्य हो गयी मानव-काया
 
जो परिवार, प्रिया-सुख पाया
 
जो परिवार, प्रिया-सुख पाया

22:26, 28 मई 2010 का अवतरण


जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
वे स्नेहीजन, वे अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ
 
जाने पुण्य उगे थे कैसे
मिले पिता, माता, गुरु वैसे
बीते जो दिन सपने जैसे
कहाँ ढूँढने जाऊँ
 
वह सम्मान मिला, यश छाया
धन्य हो गयी मानव-काया
जो परिवार, प्रिया-सुख पाया
सोच-सोच पछताऊँ
 
चारों और लगा हो मेला
रहूँ भीड़ में किन्तु अकेला
जिनका विरह न जाये झेला
कैसे उन्हें भुलाऊँ!

जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
वे स्नेहीजन, वे अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ