भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं तो मकतल में भी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह= }} {{KKVID|v=PV1QntReruE}} Category:ग़ज़ल <poem> मै…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:08, 31 मई 2010 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
मैं तो मकतल में भी किस्मत का सिकंदर निकला
कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला
था जिन्हे जों वोह दरया भी मुझी मैं डूबे
मैं के सेहरा नज़र आता था समंदर निकला
मैं ने उस जान-ए-बहारां को बुहत याद किया
जब कोई फूल मेरी शाख-ए-हुनर पर निकला
शहर वल्लों की मोहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वोही खंजर निकला