भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम चाहते हो / प्रज्ञा पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रज्ञा पाण्डेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम चाहते ह…)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:34, 2 जून 2010 के समय का अवतरण

तुम चाहते हो
अकेली मिलूँ मैं तुम्हें
पर अकेली नहीं मैं
मेरे पास है
मेरी ज्वालाओं की आग
तमाम वर्जनाओं का पूरा अतीत ।

जबसे ये जंगल हैं
तबसे ही मैं हूँ ढोती हूँ
नई सलीबें!
मैंने उफ़ नहीं की
मगर बनाती गई
आग के कुँए अपने वजूद में

तुमने जाना की मौन हूँ तो हूँ मैं मधुर
मगर मैं तो मज़बूत करती रही रीढ़
कि करुँगी मुकाबला एक दिन
रतजगों ने दी
जो तपिश उसको ढाला
मैंने कवच में

उसी को पहन आऊँगी तुमसे मिलने।
अकेली नहीं मैं !!