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"नई हवा / कर्णसिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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01:10, 8 जून 2010 का अवतरण

 
बहुत हो चुकी बातें नई हवाओं की
आओ चुपचाप इस नदी की धुन सुनें ।

बहुत शोर है, हंगामों से भर गया शहर
चलो यहाँ से किसी जंगल की राह लें ।

बहुत गर्म है काले सागर के पार की रेत
यहाँ बैठकर उसके लिए दुआ करें ।

कटने लगे है शीश यहाँ रहनुमाओं के
इस सभ्यता के शौक में कुछ और ख़ून दें ।

नुचे पंखों के सपनों से पट गई है यह सड़क
दम तोड़ती धुकधुकी की आवाज़ तो सुनें ।

यहाँ तो चोलियों के दाम बिक रही है रुह
हम भी इस बाज़ार में कुछ स्वप्न बेच लें ।

बर्फ़ीली हवाओं में कहीं दब गई जो आग
वहीं कहीं उसकी बग़ल में बसर करें ।

यारों ने दखल कर लिया यह स्वर्ग का कोना
इस नरक की आग से फौलाद बन निकलें ।

कितनी ख़ुश है ये भीड़ जला होली मार्क्स की
आओ प्रह्लाद के दर्शन वहाँ करें ।

सहमा है जंगल, पहाड़, औ’ काला सागर
स्पार्टा के गाँव से ही कोई मंत्र लें ।