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राजधानी में बैल 3 / उदय प्रकाश
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|रचनाकार=
उदयप्रकाश
|संग्रह= एक भाषा हुआ करती है /
उदय प्रकाश
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जब-जब फाल ऊपर उठते थे
इस
फसल
फ़सल
के अन्न में
होगा
धूप जैसा आटा
बादल जैसा भात
हमारे घर के कुठिला में
इस साल
कभी न होगी रात ।
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अनिल जनविजय
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