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"मौत का सन्नाटा / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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बे-ख़ौफ़ हो आया है
गाँव की
गली-गली
गुवाड़-गुवाड़
बाखल-बाखल
गाँव में
मौत का सन्नाटा है
पर कहाँ है मौत ?
आती क्यों नहीं ?
दिशाओं से पूछता घूमता है
हथेली पर जान लिए
आवारा
वहशी
मुड़दल गादड़ा ।