भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मिले तो सही / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह=थिरकती है तृष्णा / ओम …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:57, 11 जून 2010 के समय का अवतरण
धोरों की पाल पर
सलफलाती घूमती है
जहरी बांडी
मिलता नहीं कहीं भी
मिनख का जाया ।
भले ही
हो सपेरा
मिले तो सही
कहीं
माणस की गंध ।