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"मोनालिसा के आलिंगन में / राधेश्याम बन्धु" के अवतरणों में अंतर

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हम इतने
 
हम इतने

08:37, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

हम इतने
आधुनिक हो गए
अपना ही घर भूल गए,

'मोनालिसा'
के आलिंगन में
ढाई-आखर भूल गए।

शहरी राधा को गाँवों की
मुरली नहीं सुहाती अब
पीताम्बर की जगह 'जीन्स' की
चंचल चाल लुभाती अब।

दिल्ली की
दारू में खोकर
घर की गागर भूल गए।

विश्वहाट की मंडी में अब
खोटे सिक्कों का शासन,
रूप-नुमाइश में जिस्मों का
सौदा करता दु:शासन।

स्मैकी
तन के तस्कर बन
सच का तेवर भूल गए।

अर्धनग्न तन के उत्सव में,
देखे कौन पिता की प्यास?
नवकुबेर बेटों की दादी
घर में काट रही बनवास।

नकली
हीरों के सौदागर
माँ का जेवर भूल गए,

हम इतने
आधुनिक हो गए
अपना ही घर भूल गए।