भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जोकर / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> इसके बिना रहे सर्कस स…)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:13, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

इसके बिना रहे सर्कस सूना
दर्शक एक ना आए
उल्टे-सीधे पहन के कपड़े
करतब यह दिखलाए।

गिरते-गिरते बच जाता यह
पल-पल में इतराए
गुमसुम कभी न देखा इसको
हर पल यह मुस्काए।

भीतर ही भीतर खुद रोता
जग को खूब हँसाए
इसको कौन हँसाएगा, यह
मन ही मन ललचाए।

मन मर्जी का मालिक है ये
"जो कर" यह कहलाए
बच्चा बूढ़ा नर और नारी
सबके मन को भाए।।