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03:35, 14 जून 2010 का अवतरण
काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मेरे हाथ मेम
आज ऐसे कनकने लगी है
जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई
तेरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो