"घटाएं बख्शीश देती हैं / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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घटाएं बख्शीश देती हैं | घटाएं बख्शीश देती हैं | ||
− | + | रेत और राख जी रहे लोग | |
घिघिया-रिरिया कर | घिघिया-रिरिया कर | ||
बख्शीश लेते हैं | बख्शीश लेते हैं | ||
− | घटाएं चन्द्र कटोरे से | + | घटाएं चन्द्र-कटोरे से |
− | + | भिनसारे पौ फटते ही | |
− | बूंदों की | + | बूंदों की अशर्फियां |
उड़ेल देती हैं-- | उड़ेल देती हैं-- | ||
चिता-आसीन जनों पर | चिता-आसीन जनों पर | ||
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आँखों के रास्ते | आँखों के रास्ते | ||
झुराई-कठुआई हड्दियों में | झुराई-कठुआई हड्दियों में | ||
− | + | नरम जान भर देती हैं | |
घटा-मांएं आशीष देती हैं | घटा-मांएं आशीष देती हैं | ||
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बूँद-केशों से | बूँद-केशों से | ||
विषाद-अवसाद बुहार | विषाद-अवसाद बुहार | ||
− | + | कोयली कुक, झींगुरी झन्-झन् से | |
आयु-मार्ग पर | आयु-मार्ग पर | ||
थके-हारे मन पर | थके-हारे मन पर | ||
चपलता उबेट देती हैं, | चपलता उबेट देती हैं, | ||
− | + | कुहरे वाले हाथों से | |
युगों की आसक्ति समेट | युगों की आसक्ति समेट | ||
शून्य हुए मन में भर देती हैं | शून्य हुए मन में भर देती हैं |
11:42, 22 जून 2010 का अवतरण
घटाएं बख्शीश देती हैं
घटाएं बख्शीश देती हैं
रेत और राख जी रहे लोग
घिघिया-रिरिया कर
बख्शीश लेते हैं
घटाएं चन्द्र-कटोरे से
भिनसारे पौ फटते ही
बूंदों की अशर्फियां
उड़ेल देती हैं--
चिता-आसीन जनों पर
अशर्फियों की शीतल दमक
आँखों के रास्ते
झुराई-कठुआई हड्दियों में
नरम जान भर देती हैं
घटा-मांएं आशीष देती हैं
सूर्य के आग्नेयास्त्रों से
आहत बच्चों पर
दुआओं के आंसू फुहेर देती हैं--
छलछला कर, पुचकार कर
दादुरी गुनगुन में लोरियाँ भर
मीठी नीद सुला देती हैं ,
इन्द्रधनुषीय तितलियाँ भेज
उमसती-उबसती जिन्दगी में
रंग-उमंग भर देती हैं
घटा-बालाएं
बूँद-केशों से
विषाद-अवसाद बुहार
कोयली कुक, झींगुरी झन्-झन् से
आयु-मार्ग पर
थके-हारे मन पर
चपलता उबेट देती हैं,
कुहरे वाले हाथों से
युगों की आसक्ति समेट
शून्य हुए मन में भर देती हैं
घटाएं बख्शीश देती हैं
घटाएं आशीष देती हैं.