"दुआरे रामदुलारी / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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और रोज़मर्रा के सामान बनाकर | और रोज़मर्रा के सामान बनाकर | ||
अपने रामपियारे की बरक़त बढाती थी | अपने रामपियारे की बरक़त बढाती थी | ||
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+ | माई के बाद क्या कहें | ||
+ | वह कितना रोई थी? | ||
+ | रोते मन-मसोसते, गृह-स्वामिनी बनी थी, | ||
+ | जब रामपियारे ने उसका खूब माँ-मनुहार किया | ||
+ | तब, उसने पूरे जीवट से | ||
+ | सोते-जागते, ऊंघते-अलसाते | ||
+ | सैकड़ों हाथ-पैरों की चुस्ती-फुर्ती से | ||
+ | दुआरे की सत्ता सम्हाली थी-- | ||
+ | खांसते-खखारते ससुरजी के लिए | ||
+ | काढ़ा और हुक्का-चिलम तैयार करना, | ||
+ | गाय-गोरुओं का चारा-सानी लगाना, | ||
+ | इनार से पानी काढ़ कर | ||
+ | घर-भर को नहालाना-धुलाना, | ||
+ | चौका-बर्तन करना, लिट्टी सेंकना | ||
+ | और सिल-लोढ़े से चटनी पीसना | ||
+ | मजूरी पर जाते रामपियारे के | ||
+ | गमछे में कलेवा बांधना, | ||
+ | पाठशाला जाते बच्चों के बस्तों में | ||
+ | स्लेट-पेन्सिल, कापी-किताब रखना, | ||
+ | गृह देवताओं का पूजा-पाठ करना | ||
+ | और बाती जलाकर हाथ जोडे | ||
+ | रटी-रटाई चालीसा और आरती बाँचना | ||
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+ | उसके मेहनती बाजुओं में | ||
+ | दिन और रात सिमट आए, | ||
+ | ऐसे में, चार साल के बराबर दो साल ने ही | ||
+ | उसका रुप और लावण्य छीन लिया, | ||
+ | पर, तार-तार हुई उसकी देह ने | ||
+ | चमत्कार कर दिखाया, यानी | ||
+ | गांव-भर से 'आया' और 'दादी-नानी' की | ||
+ | सम्मानित उपाधियों , बुजुर्गों के आशीर्वाद | ||
+ | और बच्चों की पैलगी कमाई | ||
+ | क्योंकि उसने दुआरे दस्तक देकर | ||
+ | लोगों को अपने गुणों से मोहा था | ||
+ | अपनी मीठी-सी नकनकाती आवाज से | ||
+ | उनके दिलों को छुआ था | ||
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+ | सत्ताइस सालों बाद भी | ||
+ | वह कोयला-खान में दफ्न हो चुके | ||
+ | अपने मर्द के फरमान यादकर | ||
+ | दुआर पर सैनिक की तरह तैनात है, | ||
+ | उसके जवान बच्चे रोज निकल जाते हैं | ||
+ | या तो खेत -खलिहानों में दिहाड़ी पर | ||
+ | या, बाबूसाहेबों की चौकीदारी करने | ||
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+ | लिहाजा, आजकल | ||
+ | रामपियारी कुछ सपने पालकर | ||
+ | बेहद बाग-बाग हो रही है, | ||
+ | क्योंकि उसके जवान से दीखने लगे हैं | ||
+ | और दूर-दराज से उनके रिश्तें आने लगे हैं | ||
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+ | अब उसे बेहद सुकून है | ||
+ | कि वह सम्मानित बुज़ुर्ग का दर्जा पा सकेगी, | ||
+ | अपनी बहुओं की देख-रेख में | ||
+ | अपना दम तोड सकेगी, | ||
+ | और ज्यादा नहीं, थोड़े ही दिनों में | ||
+ | अपने रामपियारे संग स्वर्ग में | ||
+ | फुरसत और आराम से रह सकेगी. |
14:31, 24 जून 2010 का अवतरण
दुआरे रामदुलारी
सत्ताईस सालों से
गोबर-गोइंठा पाथती
चौका-बेलन सम्हालती
रामदुलारी राजी-खुशी निखार रही है
अपने रामपियारे की गृहस्थी
और खुशफ़हमी पाल रही है
खेत-खलिहानों में गुल्ली-डंडा खेलते
अपने वानर-सरीखे बच्चों की
किस्मत संवारने की,
उन्हें बाबूसाहेबों के बच्चों जैसा
होनहार-वीरवान बनाने की
सत्ताईस सालों पहले
जब सजी-संवरी रामदुलारी
सपनों की गठरी लिए अपने पीहर आई थी
और आन्खों में लबालब शर्म और
होठो पर छलकती मुस्कान की गगरी लाई थी,
उसने अपनी किलकारी-फिसकारी सब
घर की खुशी की वेदी पर चढा दिए,
उसके हाथों में गज़ब के कौशल थे
यों तो वह अंगूठा-छाप थी
लेकिन, उसके बनाए बाटी-चोखे
भाजी, भात और भुर्ते
पूरे गांव में लोकप्रिय थे,
सनई की सुतली और बांस की फत्तियों से बने
पंखों, दोनों, चिक, चटाइयों और गुलदस्तों की नुमाइश
सासू मां टोले-भर लगा आती थी,
फटी-पुरानी धोतियों से बनी
उसकी चमचमाती कथरी और ओढनी
जो बाहर पडी खटिया पर
टंगी रहती थी
अकसर पडोसियों को
चोर-उचक्का तक बना देती थी
बेशक! ऐसी थी सासू माँ कि
वह बहू के बनाए सामान नहीं,
उसे सहेज कर रखती थी[
पड़ोसियों की डाहती नज़रों से
हवा-बतास से, प्रेतिन छायाओं से,
घर आए मेहमानों का मुंह मीठा करने वाले
गुड़ और बतासों की तरह
या, नैहर से मिले जेवरों की तरह
माई के सर्पदंश से हुई मौत के पहले
वह उसकी सबसे बड़ी अमानत थी
खानदान की आन-बान थी
पुरखों के सत्कर्मों से अर्जित वरदान थी,
रामपियारे के यार-दोस्त
दुआर पर खड़े-खड़े
घूंघट से झांकती भौजी से
दे-चार बतकही ही कर पाते थे,
भौजी से आंखें मिलाकर हंसी-ठिठोली करना
रामपियारे की आँखें बचाकर छेड़-छाड़ करना
उन्हें कहां मयस्सर था,
माई ने तो बेजा निगाहों से बचाने
दुआरे की हवाओं तक को बरज रखा था
और गाय-गोरुओं के गोबर वह खुद इकट्ठे कर
भीतर रामदुलारी तक पहुँचा आती थी
जहां वह उपले पाठ-पाथकर
हाट-मेले के लिए बच्चों के झुनझुने-खिलौने
और रोज़मर्रा के सामान बनाकर
अपने रामपियारे की बरक़त बढाती थी
माई के बाद क्या कहें
वह कितना रोई थी?
रोते मन-मसोसते, गृह-स्वामिनी बनी थी,
जब रामपियारे ने उसका खूब माँ-मनुहार किया
तब, उसने पूरे जीवट से
सोते-जागते, ऊंघते-अलसाते
सैकड़ों हाथ-पैरों की चुस्ती-फुर्ती से
दुआरे की सत्ता सम्हाली थी--
खांसते-खखारते ससुरजी के लिए
काढ़ा और हुक्का-चिलम तैयार करना,
गाय-गोरुओं का चारा-सानी लगाना,
इनार से पानी काढ़ कर
घर-भर को नहालाना-धुलाना,
चौका-बर्तन करना, लिट्टी सेंकना
और सिल-लोढ़े से चटनी पीसना
मजूरी पर जाते रामपियारे के
गमछे में कलेवा बांधना,
पाठशाला जाते बच्चों के बस्तों में
स्लेट-पेन्सिल, कापी-किताब रखना,
गृह देवताओं का पूजा-पाठ करना
और बाती जलाकर हाथ जोडे
रटी-रटाई चालीसा और आरती बाँचना
उसके मेहनती बाजुओं में
दिन और रात सिमट आए,
ऐसे में, चार साल के बराबर दो साल ने ही
उसका रुप और लावण्य छीन लिया,
पर, तार-तार हुई उसकी देह ने
चमत्कार कर दिखाया, यानी
गांव-भर से 'आया' और 'दादी-नानी' की
सम्मानित उपाधियों , बुजुर्गों के आशीर्वाद
और बच्चों की पैलगी कमाई
क्योंकि उसने दुआरे दस्तक देकर
लोगों को अपने गुणों से मोहा था
अपनी मीठी-सी नकनकाती आवाज से
उनके दिलों को छुआ था
सत्ताइस सालों बाद भी
वह कोयला-खान में दफ्न हो चुके
अपने मर्द के फरमान यादकर
दुआर पर सैनिक की तरह तैनात है,
उसके जवान बच्चे रोज निकल जाते हैं
या तो खेत -खलिहानों में दिहाड़ी पर
या, बाबूसाहेबों की चौकीदारी करने
लिहाजा, आजकल
रामपियारी कुछ सपने पालकर
बेहद बाग-बाग हो रही है,
क्योंकि उसके जवान से दीखने लगे हैं
और दूर-दराज से उनके रिश्तें आने लगे हैं
अब उसे बेहद सुकून है
कि वह सम्मानित बुज़ुर्ग का दर्जा पा सकेगी,
अपनी बहुओं की देख-रेख में
अपना दम तोड सकेगी,
और ज्यादा नहीं, थोड़े ही दिनों में
अपने रामपियारे संग स्वर्ग में
फुरसत और आराम से रह सकेगी.