"आखिरी शब्द / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> रोज़ की तरह रोज़मर्रा…) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
रोज़ की तरह | रोज़ की तरह | ||
− | |||
रोज़मर्रा की वही बातें | रोज़मर्रा की वही बातें | ||
− | |||
और उनके रूप प्रतिरूप | और उनके रूप प्रतिरूप | ||
− | |||
मैं लिखने लगा था | मैं लिखने लगा था | ||
− | |||
अचानक गिर पड़ी दो लाल बूंदें कलम से | अचानक गिर पड़ी दो लाल बूंदें कलम से | ||
− | |||
स्तब्ध था मैं | स्तब्ध था मैं | ||
− | |||
जो कभी हंसती थी, रोती थी, मचलती थी, | जो कभी हंसती थी, रोती थी, मचलती थी, | ||
− | |||
पर आज खामोश है, | पर आज खामोश है, | ||
− | + | धीर,गंभीर,.. | |
− | धीर, गंभीर ,.. | + | |
− | + | ||
मेरी अथाह जिज्ञासा | मेरी अथाह जिज्ञासा | ||
− | |||
और मेरे मूक प्रश्नों से उबी.. | और मेरे मूक प्रश्नों से उबी.. | ||
− | |||
उदासी में डूबी | उदासी में डूबी | ||
− | |||
कलम ने रुधे गले से बताया | कलम ने रुधे गले से बताया | ||
− | |||
ये दो लाल बूंदें | ये दो लाल बूंदें | ||
− | |||
सामान्य नहीं | सामान्य नहीं | ||
− | |||
स्वर्णिम रक्त की है | स्वर्णिम रक्त की है | ||
− | |||
उस माटी से उठा कर लायी हूँ | उस माटी से उठा कर लायी हूँ | ||
− | |||
जहाँ वीरो ने अपने प्राण त्याग दिए | जहाँ वीरो ने अपने प्राण त्याग दिए | ||
− | |||
राष्ट्र की बलि वेदी पर.. | राष्ट्र की बलि वेदी पर.. | ||
− | |||
उठा लायी हूँ मैं देखकर उनका निस्वार्थ त्याग | उठा लायी हूँ मैं देखकर उनका निस्वार्थ त्याग | ||
− | |||
इन बूंदों को | इन बूंदों को | ||
− | + | ताकि.. | |
− | ताकि.. अमर हो सकूँ उनकी तरह | + | अमर हो सकूँ उनकी तरह |
− | + | ||
अगर हो सके तो लिख दो | अगर हो सके तो लिख दो | ||
− | |||
संवेदनहीन जनमानस के सोये अन्तःस्थल पर | संवेदनहीन जनमानस के सोये अन्तःस्थल पर | ||
− | |||
उन वीरों के अंतिम शब्द.... | उन वीरों के अंतिम शब्द.... | ||
− | |||
एक झटके के साथगिर पड़ा हाथ कागज के पृष्ठ पर | एक झटके के साथगिर पड़ा हाथ कागज के पृष्ठ पर | ||
− | |||
टूट गयी कलम अपने आखिरी शब्द कह कर.. | टूट गयी कलम अपने आखिरी शब्द कह कर.. | ||
− | |||
सफ़ेद पृष्ठ पर लिखा था.. | सफ़ेद पृष्ठ पर लिखा था.. | ||
− | + | वन्देमातरम.... जय हिंद !! | |
− | वन्देमातरम.... जय हिंद | + | |
− | + | ||
</poem> | </poem> |
15:27, 25 जून 2010 के समय का अवतरण
रोज़ की तरह
रोज़मर्रा की वही बातें
और उनके रूप प्रतिरूप
मैं लिखने लगा था
अचानक गिर पड़ी दो लाल बूंदें कलम से
स्तब्ध था मैं
जो कभी हंसती थी, रोती थी, मचलती थी,
पर आज खामोश है,
धीर,गंभीर,..
मेरी अथाह जिज्ञासा
और मेरे मूक प्रश्नों से उबी..
उदासी में डूबी
कलम ने रुधे गले से बताया
ये दो लाल बूंदें
सामान्य नहीं
स्वर्णिम रक्त की है
उस माटी से उठा कर लायी हूँ
जहाँ वीरो ने अपने प्राण त्याग दिए
राष्ट्र की बलि वेदी पर..
उठा लायी हूँ मैं देखकर उनका निस्वार्थ त्याग
इन बूंदों को
ताकि..
अमर हो सकूँ उनकी तरह
अगर हो सके तो लिख दो
संवेदनहीन जनमानस के सोये अन्तःस्थल पर
उन वीरों के अंतिम शब्द....
एक झटके के साथगिर पड़ा हाथ कागज के पृष्ठ पर
टूट गयी कलम अपने आखिरी शब्द कह कर..
सफ़ेद पृष्ठ पर लिखा था..
वन्देमातरम.... जय हिंद !!