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"फूल झर गए / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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फूलों-सम आओ, हँस हम भी झरें
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रंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरें
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पुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए ।
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फूल झर गए ।
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02:18, 26 जून 2010 का अवतरण

फूल झर गए।

क्षण-भर की ही तो देरी थी
अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी
इतने में सौरभ के प्राण हर गए ।
फूल झर गए ।

दिन-दो दिन जीने की बात थी,
आख़िर तो खानी ही मात थी;
फिर भी मुरझाए तो व्यथा हर गए
फूल झर गए ।

तुमको औ’ मुझको भी जाना है
सृष्टि का अटल विधान माना है
लौटे कब प्राण गेह बाहर गए ।
फूल झर गए ।

फूलों-सम आओ, हँस हम भी झरें
रंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरें
पुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए ।
फूल झर गए ।