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वर्तनी व फ़ॉर्मेट सुधार
वे, मेरे आने वाले कल के कलरव पर
घात लगाए बैठे हैं सब।
 
 
वर्तमान की वह पगडंडी
जो इस देहरी तक आती थी
धुर लाशों से अटि अटी पडी़ है,
ओसारे में
मृत देहों पर घात लगाए
बच्चों को लाना है,
इन थोथे औ’ तुच्छ अहंकारी सर्पों के
फन की विषबाधा का भी भय
तैर रहा है....।
एक ओर विधवाएँ
कौरव दल कौरवदल की होंगी
एक ओर द्रौपदी
:::पुत्रहीना
सुलोचना
मंदोदरी रहेंगी........।
 
 
किंतु आज तो
कृष्ण नहीं हैहैं
नहीं वाल्मीकि तापस हैं,
मै वसुंधरा के भविष्य को
विस्फोटों की भीषण थर्राहट से विचलित,
भीत, जर्जरित देह उठाए।
 
 
त्रासद, व्याकुल बालपने की
छिप
जाने कितना रक्त पिएगी।
 
 
असुरक्षित बचपन
पाने दो सुगंध प्राणों को।
: : :जाओ , कृष्ण कहीं से लाओ: : :यहाँ उत्तरा तड़प रही है!!: : :वाल्मीकि!: : :सीता के गर्भ: : :भविष्य पल रहा!!  
</poem>
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