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"दिन पके हुए / नारायणलाल परमार" के अवतरणों में अंतर
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पपीते की तरह हैं दिन पके हुए ।
पहले की तरह नहीं
धूप नाचती,
मैले कपड़े-लत्ते
हवा काँचती,
नज़र नहीं आते भौंरे थके हुए ।
अंबिया ने शुरू किया
अभि झाँकना,
पत्तों को है पसन्द
गप्प हाँकना,
ताल-तलैया पुरइन से ढँके हुए ।
आँखों में अभी कहाँ
चढ़ी खुमारी,
मेड़ों पे यात्राएँ
फिर भी जारी,
अधरों पर गीत, गंध में छके हुए ।